बच्चे हम से ही सीखते हैं

कोई भी माता-पिता नहीं चाहते हैं कि उनका बच्चा झूठ बोले, चोरी करे, ध्रूमपान करे, बेइमान बने आदि, लेकिन फिर भी कुछ बच्चे ये सारी बातें सीख जाते हैं, आखिर क्यों? आइये जानते है ऐसा क्यों होता है?

मैं प्रात: काल करीब 7-8 बजे अपनी संस्था ‘युवाम‘ जाता हूँ। लगभग 10 किलोमीटर की दूरी में 5 चौराहे पड़ते हैं जहाँ ट्रेफिक लाइटें लगी हुई हैं। इन चौराहों पर मेरी बड़ी ही अजीब स्थिति हो जाती है। देखता हूँ कि चाहे लाल बत्ती हो या हरी बत्ती कोई भी व्यक्ति इस वक्त साधारणतया इनका पालन नहीं करता। लाल बत्ती होने के बावजूद 90 फीसदी स्कूटर, कार, बस, स्कूल बस नियमों का उल्लंघन कर रेड लाइट क्रॉस कर जाते हैं। जैसा कि आप जानते है अक्सर सुबह 7-8 बजे चौराहों पर पुलिस वाले नहीं होते हैं।

मैं लाल बत्ती देखकर बड़ी सावधानी के साथ वहाँ रूक जाता हूँ, प्रात:काल बच्चों को स्कूल ले जाने वाली बसें, टैक्सी, ऑटो काफी चलते है। स्कूल पहुँचने में देरी न हो जाये इस डर के कारण सामान्यतया वे लाल बत्ती होने पर भी गाड़ी निकाल ले जाते है। 5 से 15 वर्ष के ये बच्चे बस में बैठे-बैठे ‘ड्राइवर अंकल’ को हजारों बार कानून तोड़ते हुए देखते हैं। यही नहीं कुछ अभिभावक भी मोटर साइकिल, स्कूटर या कार से जब अपने बच्चों को स्कूल छोडऩे जाते हैं तो बच्चे अपने पिताजी को हजारों बार रोड लाईट क्रॉस करते हुए देखते हैं। ध्यान रहे बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं। जब यही बच्चा बड़ा होकर कानून तोड़ता है तो दोष किसका है?

कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को झूठ बोलना नहीं सिखाते। कोई भी माता-पिता नहीं चाहते हैं कि उनके बच्चे, चोर, उचक्के, बदमाश बनें। कोई भी माता-पिता नहीं चाहते कि उनके बच्चे बुरी आदतें (जैसे : शराब पीना, धूम्रपान करना, तंबाकू खाना आदि) सीखें। ऐसी सैंकड़ों बातें है, जो कोई भी माता-पिता नहीं चाहते कि उनके बच्चे सीखें। लेकिन फिर भी अधिकाँश बच्चे ये सब सीख जाते हैं आखिर क्यों? इन सबके लिए कहीं-न-कहीं हम सब जिम्मेदार हैं। बच्चे भगवान के घर से कुछ भी नहीं सीख कर आते हैं, वे जो कुछ सीखते हैं, जन्म के बाद ही सीखते हैं और वह भी हमारी नकल करके। वे चलना-फिरना, खाना-पीना, बोलना सब कुछ हमारी नकल करके ही सीखते हैं। जब डेढ़-दो साल का बच्चा नकल करके बोलना यानि भाषा सीख जाता है तो वह बचपन से लेकर बड़े होने तक हजारों बार अपने पापा, दादा, चाचा या पास में रहने वाले किसी अंकल को सिगरेट पीता देखता है तो वह बड़ा होकर सिगरेट पीना क्यों नहीं प्रारम्भ करेगा?

जरा ध्यान दें, गौर करें, कहीं आपका तो कोई ऐसा आचरण नहीं है जो बच्चों को गलत राह पर ले जा रहा हो।

 

दोस्तों एक छोटी सी घटना बता रहा हूँ—एक बार एक माँ अपने छोटे बच्चे को साथ लेकर एक शिक्षाशास्त्री के पास गई और पूछा कि वह अपने बच्चे की शिक्षा कब प्रारम्भ करें? शिक्षाशास्त्री ने पूछा बच्चे की आयु कितनी है? माँ बोली-केवल तीन वर्ष। शिक्षा शास्त्री ने तुरन्त कहा-तीन वर्ष! और तुमने अभी तक उसकी शिक्षा प्रारम्भ नहीं की? तुम तो पहले ही तीन वर्ष गँवा चुकी हो। तुम तुरन्त उसको शिक्षा देना शुरू करो।

दोस्तों, मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि संसार में जन्म लेते ही शिशु सीखना प्रारम्भ कर देता है। हमारे शास्त्र तो कहते हैं कि शिशु तो माँ के गर्भ से ही सीखना प्रारम्भ कर देते हैं। महाभारत में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि अभिमन्यु ने गर्भ में ही चक्रव्यूह के सम्बन्ध में सीखा था। गर्भ में शिशु में भी माँ के दुख-सुख, रूचि तथा भावों की प्रतिक्रिया होती है और उसी के अनुरूप उसका चरित्र तथा व्यक्तित्व बनता है।

ध्यान रहे, घर ही बच्चे की प्रथम पाठशाला होती है। बड़ों का आचरण बच्चों के लिए नोटबुक है, जो तीन वर्ष की आयु में सीखा जाता है वह सौ वर्ष की आयु तक रहता है।

अत: आप बच्चों के समक्ष अच्छा व्यवहार, आदर्श आचरण, स्वच्छ विचार, प्रेरक दृष्टान्त और सही मार्गदर्शन प्रस्तुत करें।