मेरा सबसे घनिष्ठ मित्र है चन्द्रशेखर। उसकी शादी के लगभग एक वर्ष बाद की बात है। मैं उसके घर उससे मिलने गया। वह घर पर नहीं था। अपनी पत्नी के साथ बाजार में कुछ खरीदने गया था। घर से गये लगभग 4-5 घंटे हो चुके थे और अब रात्रि के 9 बजने वाले थे। जब में उसके घर गया तो केवल अम्मा जी (चन्द्रशेखर की माताजी) ही थी। हमेशा हँसमुख रहने वाली अम्माजी उस दिन बड़ी ही खिन्न दिखाई दे रही थीं। जब मैंने चन्द्रशेखर के बारे में पूछा कि चन्द्रशेखर कहाँ गया है? कब तक वापस आयेगा? किस काम से बाहर गया है? तो अम्माजी के खिन्न होने का कारण पता चला। अम्माजी ने बड़े ही नाराज होते हुए कहा, ‘अरे आजकल मुझे कौन पूछता है। कहाँ जाता है, कब आयेगा, क्या लेने गया है? सब अपनी मनमर्जी से करता है।’ ऐसा कहते हुए अम्माजी ने अपनी नाराजगी जाहिर की। यह पहला अवसर था कि वे चन्द्रशेखर से नाराज दिखीं। उससे पहले वे हमेशा चन्द्रशेखर की तारीफ करते नहीं थकती थीं।
हुआ यूँ कि चन्द्रशेखर कुछ दिन पहले अपनी पत्नी के साथ जाकर घर के लिए फ्रीज खरीद लाया। लेकिन खरीदने से पहले अम्माजी से न कहा और न ही पूछा। उसके कुछ दिन बाद ही उसने स्कूटर खरीदा। इस बार भी उसने अम्माजी से न पूछा और न ही सलाह ली। इस प्रकार की कुल 3-4 घटनाएँ हो गई। बस पति-पत्नी कभी पिक्चर गये तो अम्माजी को नहीं बताया, कुछ खरीदने गये तो दोनों पति-पत्नी जाकर खरीद लाये और अम्माजी को तब पता चला जब वह वस्तु घर में आ गई। खरीदने से पहले अम्माजी को न बताया, न सलाह ली।
बस अम्माजी को यूँ लगने लगा कि अब घर में उनकी पूछ नहीं रही। यानि अब घर में उनका महत्त्व कम होता जा रहा है। 70 वर्षीय अम्माजी के लिए घर में सभी सुख सुविधाएँ थीं, चन्द्रशेखर भी बड़ा आज्ञाकारी था। बस उसने गलती यह की कि कुछ सामान खरीदने से पहले, या कहीं जाने से पहले अम्माजी को बताया नहीं। अम्मा जी सोचती थी कि वह घर में सबसे बड़ी हैं, घर की मालकिन हैं, घर में जो कुछ हो उनसे पूछकर हो एवं बेटे-बहू का सोचना था कि अम्माजी को इन नई चीजों की जानकारी तो है नहीं सो उनकी सलाह क्या लेना? इस कारण अम्माजी घर में अपने आपको ‘उपेक्षित’ महसूस करने लगी।
ध्यान दें मानव स्वभाव के कुछ महत्त्वपूर्ण नियम हैं यदि आप इन नियमों का पालन करेंगे तो कभी समस्या में नहीं फँसेंगे। प्रत्येक व्यक्ति के मन में कुछ जन्मजात प्रबल इच्छाएँ होती हैं, लालसाएँ होती है। हर मनुष्य के दिल की गहराई में यह लालसा छुपी होती है कि उसके कार्यों को सराहा जावें, समाज में उसे महत्त्व मिलें, दुनियां में उसकी पहचान बनें।